तू नहीं तेरी याद सताती हैं....
आँखे बंद है लेकिन नींद कहाँ चली जाती हैं,
बंद बती अंधेरे में भी तेरी झलक-सी दिख जाती हैं,
मन में उठी लहरो को ये गुरुत्वाकर्षण भी कहाँ पकङ पाती हैं,
जहाँ-कहाँ अपवर्तित होकर तुझमें ही परावर्तित हो जाती हैं,
देखना है क्या ये किरण क्रंतिक कोण तक पँहुच पाती हैं ।
तू नहीं तेरी याद सताती हैं...
जिन्दा हूँ इसी आश पर कभी तो तु जान पायेगी,
गर्म-तप्त लू के बाद मानसून-सी छा जायेगी,
बन्जर भूमि में भी तब उपवन की महक आयेगी,
जब मैं तुझ में और तू मुझ में समा जायेगी,
कभी-कभी ध्वल भी रश्मि से दगा कर जाती हैं ।
तू नहीं तेरी याद सताती हैं....
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