Wednesday, April 13, 2011

GURU KA CHANTA

गुरूजी भूंभाटें मार कर रो पडे। आंखों से आंसुओं की प्रबल धार बह निकली। एक बार तो लगा कि अश्रुजल से बाढ आ जाएगी। हमने कहा- गुरूवर अब ज्यादा आंसू न बहाएं वरना शहर की सडक बह जाएगी। आपका तो कुछ नहीं जाएगा, लेकिन सडक बहने के बाद आम जनता को तकलीफ हो जाएगी। हमारी बात सुन गुरूजी ने आंसुओं पर ब्ा्रेक लगाया। हमने पूछा- गुरूदेव! इस तरह रोने का सबब! वे बोले- सचिन तेंदुलकर। हमने बेतरह चौंक कर कहा- तेंदुलकर और आपके आंसुओं का रिश्ता समझ नहीं आया। गुरूजी बोले- तुम समझे नहीं। मैं सचिन की गुरू भक्ति से दंग हूं। सचिन ने अपने गुरू सम्मान समारोह में कहा था कि मैं आज जो कुछ भी हूं वह अपने गुरू के चांटे की वजह से हूं। आजकल के शिष्यों को चांटा तो क्या चुटकी काट कर तो देखो। अपने मां-बाप के संग छाती पर चढने आ जाते हैं।

सचिन ने सही कहा था। उसका गुरू चांटा न मारता तो सचिन भी आज अरबपति न होता। आजकल किसे पडी है जो गुरू का चांटा खाए। आजकल के चेले तो गुरू के ही चांटा लगाने की फिराक में रहते हैं। जिसके चांटा पडा वही महान बना। इतना कह कर वे अपनी हथेलियां मलने लगे। यह देख हम 'सतर्क' हो गए और गुरूजी से एक सुरक्षित दूरी बना कर बैठ गए ताकि हमें 'करोडपति-अरबपति' बनाने की उत्तेजना में वे हमारे चांटा लगाएं तो हम अपनी सुरक्षा कर सकें। गुरूजी ने हमारी तरफ हिकारत से देखते हुए कहा- मेरी समझ में आजाद भारत में सचिन तेंदुलकर आखिरी चेला था, जिसने अपने गुरू का चांटा खाया। इसके बाद के चेले तो नकली सिक्के निकले।

इतना कह कर गुरूजी ने एक बार फिर अपनी हथेलियां रगडीं। हम समझ गए कि गुरूजी को हमारे चांटा लगाने की मचमची छूट रही है। अब हमें भी किंचित क्रोध आ गया। हमने कहा- माफ करें गुरूजी। इस चांटा पुराण को सुनते-सुनते चार घंटे बीत गए। सचिन का गुरू सच्चा गुरू था और सच्चे गुरू का चांटा खाना प्रसाद पाने के बराबर है। कबीर ने तो कहा भी है- गुरू कुम्हार शिष्य कुंभ है। आज के जमाने में गुरू बचे कहां हैं। अब तो गुरूघंटाल ही बचे हैं। विश्वविद्यालय में चले जाइए। वहां के गुरू आज भी पचास साल पुरानी धारणाएं पढा रहे हैं। उन्हें आज के जमाने में क्या हुआ इसका पता ही नहीं। ज्यादातर गुरू शिक्षा मंत्री, सचिव या कुलपति की चमचागिरी में मग्न हैं। कक्षाओं में घुसते उन्हें नानी याद आती है। गुरूओं का काम परस्पर लडना और शिष्यों को लडाना भर रह गया है। पचासों हजार की पगार पाकर भी उनका पेट नहीं भरता। ऎसे अज्ञानी गुरूओं से कौन शिष्य चांटा खाना पसन्द करेगा।

सचिन के गुरू ने सचिन को उस वक्त सिखाया था, जब सचिन के पास अपने गुरू को देने के लिए धेला भी नहीं था। अब ये ज्यादा चांटा पुराण हमें न सिखाओ। हम जानते हैं कि आपके हाथ हमारे तमाचा धरने को फडफडा रहे हैं। आप हमें तो माफ करें, क्योंकि आप गुरू नहीं गुरूघंटाल हैं। हमारी बात सुन गुरूजी हंस पडे। बोले- तुम भी अजब चेले हो। देखो मौसम बन रहा है। आज पिलाओगे नहीं।

Saturday, January 8, 2011

Teri yaad :-)

तू नहीं तेरी याद सताती हैं....
आँखे बंद है लेकिन नींद कहाँ चली जाती हैं,
बंद बती अंधेरे में भी तेरी झलक-सी दिख जाती हैं,
मन में उठी लहरो को ये गुरुत्वाकर्षण भी कहाँ पकङ पाती हैं,
जहाँ-कहाँ अपवर्तित होकर तुझमें ही परावर्तित हो जाती हैं,
देखना है क्या ये किरण क्रंतिक कोण तक पँहुच पाती हैं ।
तू नहीं तेरी याद सताती हैं...
जिन्दा हूँ इसी आश पर कभी तो तु जान पायेगी,
गर्म-तप्त लू के बाद मानसून-सी छा जायेगी,
बन्जर भूमि में भी तब उपवन की महक आयेगी,
जब मैं तुझ में और तू मुझ में समा जायेगी,
कभी-कभी ध्वल भी रश्मि से दगा कर जाती हैं ।
तू नहीं तेरी याद सताती हैं....